हाँ, जाति पूछा था! मगर कब कहाँ किसने?

 परिचय

हाल ही में हुए आतंकी घटना के बाद, ‘जाति नहीं पूछी, धर्म पूछा और गोली मार दी’ जैसे बयानों ने एक नई बहस को जन्म दिया है। सवाल यह है कि क्या यह आपदा को अवसर में बदलने की राजनीति है? इस लेख में, हम इस मुद्दे की गहराई से जांच करेंगे, उन घटनाओं का विश्लेषण करेंगे जहां जाति के आधार पर भेदभाव और हिंसा हुई, और यह समझने की कोशिश करेंगे कि इस स्थिति से कैसे निपटा जाए। यह समझना ज़रूरी है कि क्या वाकई में धर्म और जाति के नाम पर समाज को बांटा जा रहा है या नहीं।

आतंकी हमले और प्रतिक्रिया

कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की पूरे देश ने निंदा की और सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की। हर तरफ से एक ही आवाज आई कि आतंकवाद को जड़ से खत्म किया जाए और बेगुनाहों का लहू न बहे। इस त्रासदी के बाद, कुछ प्रतिक्रियाएँ चौंकाने वाली थीं।

देश की एकजुटता

विपक्षी दलों और आम नागरिकों ने धर्म और जाति से ऊपर उठकर देश की हिफाजत के लिए सरकार को पूरा समर्थन दिया। सभी ने एक स्वर में कहा कि सरकार को इस दहशतगर्दी को रोकना चाहिए।

सरकार की प्रतिक्रिया

सरकार ने मीटिंगें कीं, कड़े फैसले लिए, और पाकिस्तान पर कई पाबंदियां लगाईं। हालांकि, सरकार की रैलियां और राजनीतिक गतिविधियां भी जारी रहीं, जिससे लोगों में यह संदेह होने लगा कि क्या सरकार वास्तव में गंभीर है या सिर्फ राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रही है।

विवादित बयान: धर्म या मानवता?

इस बीच, कुछ लोगों ने यह बयान दिया कि ‘जाति नहीं पूछी, धर्म पूछा और गोली मार दी’, जिससे विवाद गहरा गया। यह बयान उन लोगों को अनदेखा कर देता है कि मारे गए लोगों में दो मुसलमान भी थे। क्या आतंकवादियों ने वाकई धर्म देखकर हमला किया, या यह मानवता पर हमला था?

धर्म की बुनियाद पर नफरत का कारोबार

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग धर्म की बुनियाद पर नफरत का कारोबार करते हैं और इसे अपनी राजनीति का हिस्सा बनाते हैं। ऐसे लोगों को यह समझना चाहिए कि नफरत से किसी का भला नहीं होता और यह समाज को बांटने का काम करती है। वास्तव में, यह आग में घी डालने जैसा है, जहाँ आप खुद को गर्म करने की उम्मीद करते हैं, लेकिन सब कुछ जलने का जोखिम उठाते हैं।

पीड़ितों का धर्म

यह कहना गलत होगा कि आतंकियों ने सिर्फ धर्म देखकर लोगों को मारा। कर्नाटक का एक मुस्लिम परिवार भी इस हमले में मारा गया था। शुभम द्विवेदी के साथ आदिल अहमद और नजाकत अली भी मारे गए।

आतंकवादियों का मकसद

आतंकवादियों का मकसद सिर्फ दहशत फैलाना था। वे बाहर से आए थे और उनका मकसद सिर्फ गोली मारना था। उन्होंने धर्म पूछा या नहीं, इससे उनकी क्रूरता कम नहीं हो जाती।

जाति कौन पूछता है?

यह सवाल महत्वपूर्ण है कि जाति कौन पूछता है? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारे समाज में जाति के आधार पर भेदभाव और हिंसा की घटनाएं आज भी हो रही हैं। क्या जातिवाद समाज के लिए एक बीमारी है, जो पूरे शरीर को कमजोर कर देती है?

दलित बारात पर हमले

16 अप्रैल 2025 को आगरा के गढ़ी रामजी गांव में एक दलित बारात पर उच्च जाति के लोगों ने हमला कर दिया क्योंकि वे डीजे बजा रहे थे। दूल्हे को घोड़ी से उतार कर पीटा गया और उसकी चैन छीन ली गई।

21 फरवरी 2025 को बुलंदशहर के धमरावली गांव में भी दलित बारात पर डीजे बजाने पर हमला किया गया, जिसमें 12 लोग घायल हो गए।

1 मार्च 2025 को मेरठ के कालिंदी गांव में दबंग जातियों ने हमला कर दिया और महिलाओं को भी पीटा। 2 लाख नगद और आभूषण लूट लिए गए।

दलित युवती पर अत्याचार

28 मार्च 2025 को यूपी के प्रतापगढ़ के रानीगंज में 22 वर्षीय दलित युवती को जाति पूछकर प्रताड़ित किया गया और मारा गया। आज भी विरोध प्रदर्शन न्याय के लिए चल रहा है।

मंदिर में प्रवेश से रोकना

23 अप्रैल 2025 को तमिलनाडु के नमक्कल 20म गांव में महामरियमन मंदिर के उत्सव के दौरान दलितों को मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया। जब पुलिस ने हस्तक्षेप किया, तो सवर्ण महिलाओं ने चारों तरफ से घेरा बना लिया।

अस्पृश्यता की दीवार

सितंबर 2024 में तमिलनाडु के विरुद्ध नगर विश्वनाथनम गांव में दलितों के लिए 30 मीटर लंबी अस्पृश्यता की दीवार बनाई गई, ताकि सवर्णों के श्मशान घाट को अलग किया जा सके।

सरकारी हस्तक्षेप

पंचायत अधिकारियों और सरकार ने हस्तक्षेप किया, लेकिन यह घटना दिखाती है कि जातिवाद हमारे समाज में कितना गहरा है।

मुर्दे को जलाने की जगह भी बंटी

यह दुखद है कि हमारे देश में जाति पूछकर मुर्दे को जलाने की जगह भी बांट दी जाती है।

दलित किशोरी के साथ बलात्कार

जनवरी 2025 में पठान मत्थिटा जिले में एक दलित किशोरी ने आरोप लगाया कि 13 से 18 वर्ष की आयु के बीच 60 से अधिक लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया। अनुसूचित जाति और जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया।

जातीय भेदभाव का आरोप

गुजरात में फरवरी 2025 में एक दलित व्यक्ति को हाउसिंग सोसाइटी में घर खरीदने से रोका गया। अहमदाबाद के इस वाक्य में जातीय भेदभाव का आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज करवाई गई।

दलितों पर हमला

नवंबर 2024 में कर्नाटक के बीदर में 15 उच्च जाति के लोगों ने दलितों पर हमला कर दिया। पुलिस जांच कर रही है।

होली पर हमला

मार्च 2025 में होली के त्यौहार के आसपास उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद, संत कबीर नगर, प्रतापगढ़, रानीगंज से लेकर के कई इलाकों में दलितों के ऊपर सवर्णों ने हमला कर दिया।

ऐतिहासिक नरसंहार

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हमारे इतिहास में जाति के आधार पर कई नरसंहार हुए हैं, जो दिखाते हैं कि जातिवाद कितना क्रूर हो सकता है।

किलवेनमनी नरसंहार

25 दिसंबर 1968 को तमिलनाडु के किलवेनमनी में 44 दलितों को जमींदारों ने मौत के घाट उतार दिया।

बथानी टोला नरसंहार

11 जुलाई 1996 को बथानी टोला में 21 दलितों को रणवीर सेना के आतंकवादियों ने मौत के घाट उतार दिया।

लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार

1 दिसंबर 1997 को लक्ष्मणपुर बाथे में 58 दलितों को रणवीर सेना के आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया, जिसमें 27 महिलाएं और 10 बच्चे शामिल थे।

अन्य नरसंहार

जातिवाद के अन्य रूप

जातिवाद सिर्फ हिंसा तक सीमित नहीं है। यह हमारे समाज में कई अन्य रूपों में भी मौजूद है।

घोड़ी चढ़ने से मारना

दलितों को घोड़ी चढ़ने से रोका जाता है, विश्वविद्यालयों में इंटरव्यू में नंबर कम दिए जाते हैं, और एनएफएस करके आरक्षण खत्म किया जा रहा है।

निजीकरण

निजीकरण भी जातिवाद का एक रूप है, क्योंकि यह दलितों और पिछड़ों के लिए अवसरों को कम करता है।

ऐतिहासिक भेदभाव

ज्योतिबा फुले को उनके दोस्त की शादी से बेदखल किया गया क्योंकि वे दलित थे। बाबा साहब अंबेडकर को स्कूल में उस मटके से पानी पीने से रोका गया जिससे बाकी बच्चे पानी पी रहे थे। उन्हें चौदार आंदोलन और महाड़ सत्याग्रह करना पड़ा क्योंकि जाति के आधार पर तालाब से पानी पीने और सड़क पर चलने की अनुमति नहीं थी।

जातिवाद के खिलाफ आवाजें

हमारे समाज में जातिवाद के खिलाफ कई आवाजें उठी हैं।

अयंकाली

दक्षिण में अयंकाली ने बैलगाड़ी लेकर सड़क पर चला और जातिवादियों की छाती पर चढ़कर सामाजिक न्याय का भारत बनाया।

नारायण गुरु

नारायण गुरु ने भी जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई।

कबीर और रैदास

कबीर और रैदास जैसे संतों ने भी जातिवाद का विरोध किया और मानवता का संदेश दिया। कबीर ने लिखा कि

‘एक बूंद एक मलमूत्र एक चाम एक गुदा एक बूंद ते सब उत्पन्न कौन बाभन कौन सूदा’

और रैदास ने लिखा कि

‘जस केतन के पात के पात पात में पात तस मानुष के जात के जात में जात रविदास मानुष न जुड़े जब तक जाति न जाति’।

गुरु घासीदास

गुरु घासीदास ने लिखकर जातिवाद का विरोध किया।

‘मनखे मनखे एक समाना’

सिद्धनाथ और शिवाजी

सिद्धनाथ और शिवाजी जैसे लोगों ने भी जातिवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

बुद्ध

बुद्ध ने भी जातिवाद का विरोध किया और मानवता का पाठ पढ़ाया।

आधुनिक समय में जातिवाद

आज भी हमारे समाज में जातिवाद मौजूद है।

संविधान में पाबंदी

संविधान में जाति के नाम पर छुआछूत को पाबंदी करनी पड़ी, क्योंकि यह हमारे समाज में व्याप्त था।

फूले की फिल्म पर रोक

जातिवाद के कारण ही फूले की फिल्म बनाने पर रोक लगाई जा रही है।

मंडल आंदोलन

मंडल आंदोलन पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए हुआ, क्योंकि वे जाति के आधार पर भेदभाव का शिकार थे।

लालू, मुलायम और कांशीराम

लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और कांशीराम जैसे नेताओं ने जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई।

कर्पूरी ठाकुर और जगदेव प्रसाद कुशवाहा

कर्पूरी ठाकुर और जगदेव प्रसाद कुशवाहा को गालियां दी गईं और मार डाला गया क्योंकि उन्होंने जातिवाद का विरोध किया था।

अखिलेश यादव का घर गंगाजल से धुलवाया

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का घर गंगाजल से धुलवाया गया, क्योंकि वे पिछड़ी जाति से थे।

राष्ट्रपति का अपमान

महामहिम राष्ट्रपति को संसद भवन के उद्घाटन में नहीं बुलाया गया और रामनाथ कोविंद जी और द्रोपदी मुर्मू जी के मंदिरों में जाने पर आपत्तियां की गईं, क्योंकि वे दलित थे।

बाबू जगदीवन राम का अपमान

बाबू जगदीवन राम के उप प्रधानमंत्री होते हुए भी बनारस में मंदिर का उद्घाटन करने पर गंगाजल से धोया गया था, क्योंकि वे दलित थे।

जातिवाद के विभिन्न पहलू

जातिवाद हमारे जीवन के हर पहलू में व्याप्त है। क्या जातिवाद समाज के ताने-बाने को कमजोर करता है?

शादी और दोस्ती

शादी और दोस्ती करते समय भी लोग जाति पूछते हैं।

लाभ देना

लाभ देते समय भी जाति पूछी जाती है।

एंटी कास्ट मूवमेंट

इस देश में हजारों साल में एंटी कास्ट मूवमेंट खड़ा हुआ, जो कहता है कि जातियां खत्म करो, मगर जातियां खत्म नहीं होने दी गईं, क्योंकि इन जातियों से चंद मुट्ठी भर ताकतवर लोगों को फायदा था।

अब आप क्या कर सकते हैं?

जातिवाद और धर्म के नाम पर हो रहे अन्याय को खत्म करने के लिए हमें एकजुट होकर काम करना होगा।

  • जातियों को खत्म करने का आंदोलन करें।
  • हर घर में बाबा साहब अंबेडकर की फोटो लगाएं।
  • संविधान का पाठ करें और संविधान को घर-घर पहुंचाएं।
  • 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाएं।
  • अपनी जाति में, अपने कबीले में जाति खत्म करने का आंदोलन करें।
  • जाति जनगणना कराएं।
  • जातियों को जो हिस्सेदारी मिलनी चाहिए उन्हें दिलवाएं।
  • गैर बराबरी और अन्याय से लड़ाई लड़ें।
  • इंसान बनें।
  • अपने हिस्से का खाएं और दूसरों का सम्मान करें।

निष्कर्ष

जातिवाद हमारे समाज के लिए एक अभिशाप है। हमें इसे खत्म करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। यह एक लंबी और कठिन लड़ाई है, लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए। हमें एकजुट होकर काम करना होगा और एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा जहां सभी लोग समान हों और किसी के साथ कोई भेदभाव न हो।

क्या करें?

जातिवाद और धार्मिक भेदभाव को मिटाने के लिए यहां कुछ कदम दिए गए हैं:

  • जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाएं।
  • जातिवाद से पीड़ित लोगों की मदद करें।
  • अपने बच्चों को जातिवाद के बारे में शिक्षित करें।
  • अपने समुदाय में जातिवाद के खिलाफ जागरूकता फैलाएं।
  • जातिवाद को खत्म करने के लिए काम करने वाले संगठनों का समर्थन करें।

Disclaimer

इस लेख में निम्नलिखित शब्दों का उपयोग किया गया है, जिनका अर्थ इस संदर्भ में इस प्रकार है:

  • दलित: भारतीय समाज में सबसे निचली जाति के लोग।
  • सवर्ण: भारतीय समाज में उच्च जाति के लोग।
  • अस्पृश्यता: जाति के आधार पर भेदभाव करने की प्रथा।
  • नरसंहार: बड़ी संख्या में लोगों की हत्या।
  • आरक्षण: सरकारी नौकरियों और शिक्षा में दलितों और पिछड़ों के लिए सीटों का आरक्षण।
  • संविधान: भारत का सर्वोच्च कानून।
  • जाति जनगणना: भारत में जाति के आधार पर लोगों की गिनती।

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